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कश्मीरियों के मानवाधिकार के मामले में भारत विफल

कुछ राहत, मगर दमनात्मक प्रतिबंध जारी

श्रीनगर में बर्फ़बारी के बीच सुरक्षा में तैनात भारतीय अर्धसैनिक बल का एक जवान, 15 जनवरी, 2020, कश्मीर.  © 2020 एपी फोटो/डार यासीन

कश्मीर में पिछले पांच माह से प्रतिबंध जारी हैं. इस आशंका को देखते हुए कि भारतीय  संविधान में जम्मू और कश्मीर राज्य को प्रदत्त स्वायत्तता रद्द करने का कश्मीरी विरोध कर सकते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने वहां प्रतिबन्ध लगा रखे हैं.

अगस्त में लगाए गए प्रतिबंधों के बाद, सरकार ने उनमें से कुछ को ढीला करने के लिए धीमी गति से और अनमने ढंग से कुछ कदम उठाए हैं, पर ये कश्मीरीयों के अधिकारों को बरकरार रखने में अभी तक नाकाफ़ी साबित हुए हैं.

मनमाने ढंग से गिरफ्तार किए गए हजारों लोगों जिनमें वकील, दुकानदार, व्यापारी, छात्र, अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं, को अब रिहा कर दिया गया है. लेकिन जैसी कि खबर है, उन्हें सरकार की आलोचना नहीं करने के वादा पर रिहा किया गया है. पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित कुछ वरिष्ठ कश्मीरी राजनीतिक नेता अभी भी हिरासत में हैं.

पुलिस ने स्वीकार किया कि कम-से-कम 144 बच्चों को हिरासत में लिया गया था और अब चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ ने बच्चों को सुधार हेतु डी-रेडिकलाइज़ेशन शिविरों में डालने की बात कही है.

सरकार ने फोन लाइन और इंटरनेट तक पहुंच भी रोक दी थी. वह आलोचना और असंतोष से इतनी डरी हुई थी कि उसने जन्म या मृत्यु की खबर साझा करने, डॉक्टर से संपर्क करने, सामान आपूर्ति का आर्डर देने, टर्म पेपर के लिए शोध करने, टैक्स जमा करने और सेब एवं अखरोट व्यापार करने की कश्मीरियों की क्षमता को कुंद कर दिया.

हालांकि सरकार ने लैंडलाइन और कुछ मोबाइल फोन सेवाओं को धीरे-धीरे बहाल करना शुरू कर दिया है, मगर इंटरनेट सेवाएं बहाल करने से इनकार कर दिया है. 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंटरनेट तक पहुंच को मौलिक अधिकार बताने के बाद सरकार थोड़ी नरम पड़ी है लेकिन उसने केवल सरकार नियंत्रित इंटरनेट कियोस्क स्थापित किए हैं, जहां फ़ायरवॉल महज कुछ वेबसाइटों की ही इजाज़त देते हैं और सोशल मीडिया तो बिलकुल वर्जित है. यह अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है और अदालत द्वारा निर्धारित इस सिद्धांत का शायद ही अनुपालन करता है कि “इंटरनेट के जरिए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी तरह का व्यापार, व्यवसाय या पेशा करने की स्वतंत्रता को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है.”

सरकार की इन नीतियों ने भारी कीमत वसूल की है और आलोचना से बचने की उनकी कोशिशें  काम नहीं आई हैं. संयुक्त राष्ट्र ने और साथ ही अनेक विदेशी सरकारों ने इस पर चिंता व्यक्त की है.

कई एक्टिविस्टों का कहना है कि सरकार की कुछ कार्रवाइयां, काफी हद तक चीन की सरकार के दमनात्मक तौर-तरीके की याद ताजा कराती हैं. भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अधिकार उल्लंघन की अपनी कार्रवाइयों को जायज ठहराने की कोशिश की है. बेशक, कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य का महत्वपूर्ण कार्य है, लेकिन ऐसा करते हुए नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करना आवश्यक है. भारत के लिए यह जरूरी है कि वह कश्मीर में और बेहतर करे.

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