Skip to main content

मुस्लिम विरोधी भीड़ की हिंसा में भारतीय पुलिस की मिलीभगत पाई गई

स्वतंत्र रिपोर्ट फरवरी के दिल्ली हमलों में पुलिस निष्क्रियता को उजागर करती है

नई दिल्ली के सीलमपुर इलाके में नए नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस का पहरा, भारत, 20 फरवरी, 2020.  ©️ 2020 एपी फोटो/मनीष स्वरूप

दिल्ली में फरवरी 2020 में हिंदू भीड़ द्वारा मुसलमानों पर किए गए हमलों की एक स्वतंत्र जांच में पाया गया है कि हिंसा में न केवल पुलिस की मिलीभगत थी बल्कि उसने हिंसा के लिए उकसाया भी. ये हमले भारत सरकार की भेदभावपूर्ण नागरिकता नीतियों के खिलाफ कई हफ़्तों से चले आ रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बाद हुए. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि जब उन्होंने हिंसा के दौरान पुलिस से मदद मांगी, तो पुलिस ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि “उनके पास कार्रवाई संबंधी कोई आदेश नहीं है.”

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा “नियोजित और लक्षित” थी. इसमें यह भी पाया गया है कि पुलिस ने हिंसा के लिए मुस्लिम पीड़ितों के खिलाफ मामले दर्ज किए, लेकिन इसे भड़काने वाले सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की.

कुछ भाजपा नेताओं ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा की खुलेआम वकालत की. भाजपा के एक स्थानीय नेता द्वारा पुलिस से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को समाप्त कराने की मांग के तुरंत बाद हमले शुरू हुए. हिंसा में कम-से-कम 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी दिल्ली हिंसा में पुलिस की विफलता और पक्षपातपूर्ण जांच का दस्तावेज़ीकरण किया है. हिंसा और पुलिस अत्याचार की निष्पक्ष जांच करने की जगह पुलिस अब छात्रों, कार्यकर्ताओं और सरकार के अन्य आलोचकों को गिरफ़्तार करने के लिए आतंकवाद निरोधी और राजद्रोह जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल कर रही है. दिल्ली पुलिस ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा है कि दोनों समुदायों से “लगभग एक सामान संख्या में” लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन उसने गिरफ्तारी के बारे में तफ़सील से नहीं बताया है. अप्रैल में, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, जिन्होंने पुलिस गिरफ्तारी पर सवाल उठाए थे, पर सोशल मीडिया पर “भड़काऊ” बयान देने के लिए राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया.

हिंसा का विवरण, प्रशासन की मिलीभगत और कार्यकर्ताओं को धमकी देना एवं उनका उत्पीड़न भारत में बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा की पिछली घटनाओं की तरह ही डराने वाला है. 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम-विरोधी हिंसा के कई गवाहों ने बताया था कि पुलिस ने या तो उनके फोन का जवाब नहीं दिया या यह कहा कि “हमारे पास आपको बचाने के लिए कोई आदेश नहीं हैं.”

भारत में सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में विफलता ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ और अधिक अत्याचार को बढ़ावा दिया है और भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में अविश्वास को गहरा किया है. सरकार को नागरिकता नीतियों का शांतिपूर्ण विरोध करने वालों के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोपों को तुरंत वापस लेना चाहिए, इस नई रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करना चाहिए और पुलिस अत्याचार सहित दिल्ली हिंसा की त्वरित, विश्वसनीय और निष्पक्ष आपराधिक जांच सुनिश्चित करनी चाहिए. संकटों में घिरे भारत के अल्पसंख्यक इसी आस में हैं.

Your tax deductible gift can help stop human rights violations and save lives around the world.

Region / Country