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कश्मीर में प्रतिबंध से स्वास्थ्य संबधी चिंताएं सामने आईं

चिकित्सों ने आगाह किया है कि संचार प्रतिबंध बीमार लोगों को जोखिम में डाल रहे हैं

श्रीनगर में कर्फ्यू के दौरान एक एम्बुलेंस को रोकता भारतीय अर्धसैनिक बल का जवान, 17 अगस्त, 2019.  © 2019 साकिब मजीद/एसओपीए इमेजेज/सिपा वाया एपी इमेजेज
 

“यह विरोध नहीं, निवेदन है,” ऐसा उस तख्ती पर लिखा हुआ था जिसे पिछले हफ्ते श्रीनगर के एक सरकारी अस्पताल के बाहर डॉक्टर उमर सलीम थामे हुए थे. उनकी मांग थी कि भारत सरकार 5 अगस्त से जम्मू और कश्मीर में फोन और इंटरनेट सेवा पर लगे प्रतिबंधों को उठा ले. उन्हें अहसास हुआ कि ये बंदिशें मरीज़ों को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने से रोक रही हैं. खबरों के अनुसार, इस हरकत के लिए पुलिस ने उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया.

सलीम यह चिंता ज़ाहिर करने वाले अकेले शख्स नहीं हैं कि कश्मीर में बुनियादी स्वतंत्रता का हनन करने वाले सुरक्षा प्रतिबंध लोगों को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने से रोक रहे हैं.

मेडिकल जर्नल बीएमजे में प्रकाशित 16 अगस्त को जारी एक पत्र में, भारत के 19 डॉक्टरों ने सरकार से संचार सेवाओं और आवाजाही पर प्रतिबंधों को ढीला करने की मांग की. उन्होंने कहा है कि ये प्रतिबंध “स्वास्थ्य सेवा और जीवन के अधिकार से खुला इंकार हैं,” क्योंकि ये मरीजों और कर्मचारियों को बगैर रोकटोक अस्पतालों तक पहुंचना मुश्किल बना देते हैं. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट ने भी प्रतिबंध के कारण कश्मीरियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर चिंता जताई.

भारत सरकार का दावा है कि ये प्रतिबंध इसलिए ज़रूरी हैं ताकि हिंसक विरोध प्रदर्शनों पर लगाम लगा कर मानव-जीवन को बचाया जा सके. हालांकि, सरकार द्वारा व्यापक और अनिश्चित काल तक बुनियादी संचार सेवाओं पर प्रतिबंध न केवल सूचना साझा और प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक सुनिश्चित करने जैसे अन्य अधिकारों का भी अतिक्रमण है.

मिसाल के लिए, कश्मीर के एक पत्रकार ने अपनी बहन के बारे में लिखा, जिसको गर्भपात सहना पड़ा: “अस्पताल के डॉक्टरों ने अफसोस जताया कि संचार सेवाओं पर प्रतिबंध के कारण वे सही मौके पर वरीय स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क नहीं कर सके. अगर ऐसा होता तो शायद बच्चे को बचाया जा सकता था.” 9 अगस्त को एक मृत बच्चे ने जन्म लिया. इस बच्चे के माता-पिता को प्रसव की जटिलताएं उत्पन्न होने के बाद भी परिवहन सेवाएं ठप्प होने के कारण जिला अस्पताल तक पैदल चल कर आना पड़ा.

कीमोथेरेपी से लेकर डायलिसिस तक, समय पर जीवन रक्षक उपचार हासिल करने के लिए मरीजों को जद्दोजहद करना पड़ रहा है. सलीम ने बताया कि सरकारी बीमा योजना के तहत मुफ्त चिकित्सा सेवा प्राप्त करने में गरीब मरीज़ असमर्थ हैं क्योंकि इससे जुड़े रिकार्ड्स की जानकारी के लिए फोन या डिजिटल कनेक्टिविटी जरूरी होते हैं. हालांकि, श्रीनगर के जिलाधिकारी ने ट्वीट किया कि “हम सभी को आश्वस्त करते हैं कि कश्मीर में स्वास्थ्य सेवा का कोई संकट नहीं है,” आगे उन्होंने कहा कि “कठिनाइयों से इनकार नहीं, मगर सच्चाई की क़द्र करना जरूरी है.”

कश्मीर में भारत सरकार की कार्रवाई कश्मीरियों के अधिकारों की कीमत पर नहीं हो सकती. आवाज़ उठाने वाले डॉक्टरों का मुंह बंद करने से खतरों में पड़े जीवन की वास्तविक समस्याओं  का निदान नहीं होगा. इसके बजाय, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए जिससे कि लोग स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाएं प्राप्त कर सकें.

 

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