(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच, एमनेस्टी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स (आईसीजे) ने आज कहा कि पाकिस्तानी सरकार को अहमदिया धार्मिक समुदाय के सदस्यों पर हिंसक हमलों में बढ़ोतरी की तत्काल और निष्पक्ष जांच करनी चाहिए. सरकार को चाहिए कि अहमदियों के खिलाफ खतरे और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ उपयुक्त कानूनी कार्रवाई करे.
जुलाई 2020 से, जाहिर तौर पर अहमदिया समुदाय के सदस्यों की योजनाबद्ध हत्याओं की कम से कम पांच घटनाएं हुई हैं. केवल दो मामलों में पुलिस ने संदिग्ध को हिरासत में लिया है. पाकिस्तान के सरकारी तंत्र ने लंबे अरसे से अहमदियों के खिलाफ हिंसा को बहुत कम तवज्जो दिया है और कई दफा तो इसे प्रोत्साहित भी किया है. पाकिस्तानी कानून के तहत अहमदियों के धर्म और आस्था की स्वतंत्रता के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जाता है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया प्रमुख उमर वारिच ने कहा, “पाकिस्तान में कुछ समुदाय ही हैं जो अहमदियों के समान पीड़ित हैं. हत्याओं में हालिया बढ़ोतरी दुखद रूप से न केवल उनके समक्ष खतरों की गंभीरता को, बल्कि अहमदिय समुदाय की हिफ़ाजत करने या अपराधियों को दंडित करने में विफल सरकारी तंत्र की बेरुख़ी को भी रेखांकित करती है.”
20 नवंबर को, कथित तौर पर एक किशोर हमलावर ने 31 वर्षीय डॉ. ताहिर महमूद की गोली मार कर हत्या कर दी. उन्हें तब गोली मारी गई जब वे पंजाब के ननकाना साहिब जिला स्थित अपने घर का दरवाजा किसी के दस्तक देने पर खोल रहे थे. हमले में महमूद के पिता और दो चाचा घायल हुए. पुलिस ने बताया कि संदिग्ध ने “धार्मिक मतभेदों के कारण परिवार पर हमला करने की बात कबूल की.”
खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के पेशावर शहर में हाल में कई हमले हुए हैं. 9 नवंबर को, 82 साल के महमूब खान की तब गोली मार कर हत्या की गई जब वे एक बस अड्डे पर इंतजार कर रहे थे. 6 अक्टूबर को, मोटरसाइकिल सवार दो लोगों ने गवर्नमेंट सुपीरियर साइंस कॉलेज में प्रोफेसर 57 वर्षीय डॉ. नईमुद्दीन खट्टक की कार को रोका और पांच गोलियां चलाईं, जिससे उनकी मौत हो गई. उनके परिवार ने बताया कि एक दिन पहले एक सहकर्मी के साथ उनकी “धार्मिक मुद्दे पर गर्मागर्म बहस” हुई थी. सामुदायिक संगठन जमात-ए-अहमदिया ने एक बयान जारी कर कहा कि खट्टक को पहले भी धमकी मिली थी और उनकी आस्था के कारण उन्हें निशाना बनाया गया.
12 अगस्त को पेशावर में 61 साल के मेराज अहमद की अपनी दुकान बंद करते समय गोली मार कर हत्या कर दी गई. 29 जुलाई को, एक कथित 19 वर्षीय हमलावर ने उच्च सुरक्षा वाले अदालत कक्ष के अंदर 57 वर्षीय ताहिर अहमद नसीम की हत्या कर दी. नसीम पर ईश-निंदा के आरोपों का मुकदमा चल रहा था. सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में संदिग्ध ने दावा किया कि नसीम “ईश-निंदक” थे.
एक के बाद एक आने वाली पाकिस्तानी सरकारें अहमदिया समुदाय के मानवाधिकारों की रक्षा और उनकी सुरक्षा करने में विफल रही हैं. पाकिस्तान की दंड संहिता स्पष्ट रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करती है और अहमदियों को “प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम के रूप में प्रस्तुत करने” से प्रतिबंधित कर निशाना बनाती है. अहमदियों पर सार्वजनिक रूप से अपनी आस्था प्रकट करने या उसका प्रचार करने, मस्जिदों का निर्माण करने या अज़ान देने पर पाबंदी है.
सरकार अहमदियों को उनकी धार्मिक मान्यताओं के कारण ईश-निंदा और अन्य अपराधों के लिए मनमाने ढंग से गिरफ्तार करता है, हिरासत में लेता है और आरोपित करता है. पुलिस अक्सर अहमदियों के उत्पीड़न और उनके खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाने में शामिल रहती आई है या उसने अहमदिया-विरोधी हिंसा रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया है. अहमदियों का धार्मिक उत्पीड़न रोकने में सरकार की विफलता ने उनके खिलाफ धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ावा दिया है.
इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट के कानून और नीति निदेशक इयन सीडरमैन ने कहा, “पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र महासभा में तय उस आम सहमति का हिस्सा था, जिसमें यह कहा गया है कि राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए कारगर उपाय करने होंगे ताकि धार्मिक अल्पसंख्यक से आने वाले व्यक्ति अपने सभी मानवाधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रताओं का बिना किसी भेदभाव और कानून के समक्ष पूर्ण समानता के साथ प्रभावी ढंग से उपभोग कर सकें. पाकिस्तानी सरकार अहमदियों के मामले में ऐसा करने में पूरी तरह से विफल रही है.”
पाकिस्तानी सरकार अहमदियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को भी प्रश्रय देती है. उदाहरण के लिए, पासपोर्ट आवेदन करने वाले सभी पाकिस्तानी मुस्लिम नागरिक से एक बयान पर हस्ताक्षर करवाया जाता है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे अहमदी समुदाय के संस्थापक को “पाखंडी” और अहमदियों को गैर-मुस्लिम मानते हैं.
अहमदिया समुदाय के खिलाफ पाकिस्तानी कानून पाकिस्तान के उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करते हैं जो नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते (आइसीसीपीआर) के तहत तय किए गए हैं और जिसे पाकिस्तान ने 2010 में मंजूरी दी थी. इनमें अंतःकरण, धर्म, अभिव्यक्ति और संगठन बनाने की स्वतंत्रता और किसी को अपने धर्म के प्रति आस्था जताने और उस पर अमल करने के अधिकार शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के स्वतंत्र विशेषज्ञों, साथ ही धर्म या आस्था की स्वतंत्रता पर विशेष दूत, अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत और गैर-न्यायिक, त्वरित या मनमाने मृत्युदंड पर विशेष दूत ने पूर्व में भी पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट एशिया निदेशक पेट्रीसिया गोस्मैन ने कहा, “पाकिस्तान की संघीय और प्रांतीय सरकारों को चाहिए कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के साथ हो रहे व्यापक और अनियंत्रित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार को खत्म करने के लिए तत्काल कानूनी और नीतिगत कदम उठाए. सरकार को ईशनिंदा कानून और सभी अहमदिया-विरोधी प्रावधानों को निरस्त्र करना चाहिए.”